एक समय भगवा किमिलायं विहरति वेलुवने।
एक समय भगवान किम्बिल प्रदेश के वेलुवन में विहार कर रहे थे।
अथ खो आयस्मा किमिलो येन भगवा तेनुपसंकमि।
उस समय आयु. किम्बिल भगवान के पास पहुंचे।
उस समय आयु. किम्बिल भगवान के पास पहुंचे।
उपसंकमित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमन्तं निसीदि।
पास जाकर वे भगवान को अभिवादन कर एक ओर बैठ गए।
पास जाकर वे भगवान को अभिवादन कर एक ओर बैठ गए।
एकमन्तं निसिन्नो खो आयस्मा किमिलो भगवन्तं एतद वोच-
एक ओर बैठे आयु. किम्बिल ने भगवान से यह कहा-
एक ओर बैठे आयु. किम्बिल ने भगवान से यह कहा-
‘‘को नु खो, भन्ते! हेतु को पच्चयो, येन तथागते परिनिब्बुते सद्धम्मो न चिरट्ठितिको होति?’’
‘‘भन्ते! इसका क्या कारण है, क्या हेतु है कि तथागत के परिनिर्वाण के बाद सधम्म चिर स्थायी नहीं होता?’
‘‘भन्ते! इसका क्या कारण है, क्या हेतु है कि तथागत के परिनिर्वाण के बाद सधम्म चिर स्थायी नहीं होता?’
‘‘इध किमिल, तथागते परिनिब्बुते, भिक्खु-भिक्खुनियो, उपासका-उपासिकायो सत्थरि अ-गारवा विहरन्ति, अ-पतिट्ठा। धम्मे अ-गारवा विहरन्ति, अ-पतिट्ठा। संधे अ-गारवा विहरन्ति, अ-पतिट्ठा। सिक्खाय अ-गारवा विहरन्ति, अ-पतिट्ठा। अञ्ञ-मञ्ञं अ-गारवा विहरन्ति, अ-पतिट्ठा। अयं खो, किमिल ! हेतु अयं पच्चयो, येन तथागते परिनिब्बुते सद्धम्मो न चिरट्ठितिको होति?’’
‘‘हे किम्बिल! यदि भिक्खु-भिक्खुनिया, उपासक-उपासिकाएं शास्ता के प्रति गौरव रहित हो जाती है, आदर रहित हो जाती है। धर्म के प्रति गौरव रहित हो जाती है, आदर रहित हो जाती है। संध के प्रति गौरव रहित हो जाती है, आदर रहित हो जाती है। शिक्षा-पदों के प्रति गौरव रहित हो जाती है, आदर रहित हो जाती है। परस्पर गौरव रहित हो जाती है, आदर रहित हो जाती है। यही कारण, यही हेतु है, किम्बिल, कि तथागत के परिनिर्वाण के बाद सधम्म चिर स्थायी नहीं होता।’’
‘‘को नु खो, भन्ते! हेतु को पच्चयो, येन तथागते परिनिब्बुते सद्धम्मो चिरट्ठितिको होति?’’
‘‘भन्ते! इसका क्या कारण है, हेतु है कि तथागत के परिनिर्वाण के बाद सधम्म चिर स्थायी रहता है?’’
‘‘भन्ते! इसका क्या कारण है, हेतु है कि तथागत के परिनिर्वाण के बाद सधम्म चिर स्थायी रहता है?’’
‘‘इध किमिल, तथागते परिनिब्बुते, भिक्खु-भिक्खुनियो, उपासका-उपासिकायो सत्थरि सगारवा विहरन्ति, स-पतिट्ठा। धम्मे स-गारवा विहरन्ति, स-पतिट्ठा। संधे स-गारवा विहरन्ति, स-पतिट्ठा। सिक्खाय स-गारवा विहरन्ति, स-पतिट्ठा। अञ्ञ -मञ्ञं स-गारवा विहरन्ति, स-पतिट्ठा। अयं खो, किमिल ! हेतु अयं पच्चयो, येन तथागते परिनिब्बुते सद्धम्मो चिरट्ठितिको होति".
‘‘हे किम्बिल ! यदि भिक्खु-भिक्खुनिया, उपासक-उपासिकाएं शास्ता के प्रति गौरव सहित हो जाती है, आदर सहित हो जाती है। धर्म के प्रति गौरव सहित हो जाती है, आदर सहित हो जाती है। संघ के प्रति गौरव सहित हो जाती है, आदर सहित हो जाती है। शिक्षा-पदों के प्रति गौरव सहित हो जाती है, आदर सहित हो जाती है। परस्पर गौरव सहित हो जाती है, आदर सहित हो जाती है। यही कारण, यही हेतु है, किम्बिल, कि तथागत के परिनिर्वाण के बाद सधम्म चिर स्थायी रहता है(किम्बिल सुत्तं: अ. नि. भाग-2ः पंचक निपात)।’’
‘‘हे किम्बिल ! यदि भिक्खु-भिक्खुनिया, उपासक-उपासिकाएं शास्ता के प्रति गौरव सहित हो जाती है, आदर सहित हो जाती है। धर्म के प्रति गौरव सहित हो जाती है, आदर सहित हो जाती है। संघ के प्रति गौरव सहित हो जाती है, आदर सहित हो जाती है। शिक्षा-पदों के प्रति गौरव सहित हो जाती है, आदर सहित हो जाती है। परस्पर गौरव सहित हो जाती है, आदर सहित हो जाती है। यही कारण, यही हेतु है, किम्बिल, कि तथागत के परिनिर्वाण के बाद सधम्म चिर स्थायी रहता है(किम्बिल सुत्तं: अ. नि. भाग-2ः पंचक निपात)।’’
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