Monday, August 26, 2019

हिमेश रेशमिया

हिमेश रेशमिया
कला और मानवता दोनों को नमन. बिना मानवता के कला की भी इज्जत नहीं होती. 
ट्रेनों में, हम आये दिनों कितनी 'रानू मण्डल' को सुनते हैं. वह सिर पर बेतरतीब बालों को बांधे, बहते नाक वाली आपके सामने हाथ फैलाये 5-6 साल की लड़की भी हो सकती है, या जंग खाए पतले लोहे के रिंग से नंगे फर्श पर हाथ-पावं सिकोड़ कर लाचारी को अभिशप्त अपनी काया निकालती मैले-कुचेली फ़राक वाली लड़की, अथवा लता मंगेशकर को मात देने वाली सुरीली आवाज वाली 'रानू मंडल'.

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