Friday, August 16, 2019

(Asok Edicts: (अशोक शिलालेख)

 अशोक के शिलालेख 
अशोक के शिलालेख प्राचीन इतिहास के साक्ष्य के रूप में महत्वपूर्ण स्रोत हैं। इनसे तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक तथा धार्मिक स्थिति का पता चलता है। अशोक के शिलालेखों में प्रशासनिक व्यवस्था एवं धम्म से सम्बन्धित अनेक बातों का पता चलता है। इन लेखों को पढ़ने में सर्वप्रथम 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप ने सफलता प्राप्त की। किन्तु उन्होंने "देवानांपिय" की पहचान सिंहल (श्रीलंका) के राजा तिस्स से कर डाली। किन्तु कालान्तर में यह तथ्य प्रकाश में आया कि यह उपाधि अशोक के लिए प्रयुक्त की गई है। अशोक के शिलालेख की खोज सर्वप्रथम 1750 ई. में पाद्रेटी फेंथैलर ने की थी। अशोक के  शिलालेख का अर्थ उन लेखों से है जो पत्थर की पट्टियों या चट्टानों को खोदकर लिखे गये हो। अर्थात वह शिला या पत्थर जिस पर लेख खुदा या अक्षर उत्कीर्ण किये गए हो शिलालेख कहलाता है।

Image result for सम्राट अशोक का साम्राज्य मेप अशोक के शिलालेखों की भाषा-
भारत में पाये जाने वाले प्राचीनतम ऐतिहासिक शिलालेख अशोक के हैं। जो मुख्यतः धम्मलिपि में लिखे गये हैं। किन्तु कुछ शिलालेख खरोष्ठी, आरमेइक, यूनानी  लिपियों में लिखे गये हैं। जैसे-शाहबाजगढ़ी तथा मानसेहरा शिलालेख खरोष्ठी लिपि में हैं। कुछ लघु शिलालेखों में आरमेइक तथा यूनानी लिपि पायी जाती है जैसे-शरेकुना (कन्धार) से प्राप्त शिलालेख में यूनानी तथा आरमेइक लिपि का प्रयोग किया गया है। तथा अफगानिस्तान के लमगान से प्राप्त "पुलेदारुत्त" शिलालेख आरमेइक भाषा में है।
    अशोक के शिलालेखों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है-
 1 .  दीर्घ शिलालेख (Major Rock Edicts)
Image result for dhauli rock inscription
Dhauli(Udisa)
 2.  लघु शिलालेख(Minor rock Edicts)।
-दीर्घ शिलालेखों की संख्या 14 है।

प्राप्त प्रमुख शिलालेखों की वर्ष वार स्थिति निम्नानुसार है-
क्र. शिलालेख         लिपि           खोज वर्ष     स्थिति
1. शाहबाज गढ़ी    खरोष्ठी         1836         पेशावर(पाकिस्तान) 
2. मानसेहरा        खरोष्ठी         1889         हजारा (पाकिस्तान)
3. गिरिनार         धम्म लिपि   1822         जुनागढ (काठियावाड़) 
4. एर्रगुड़ी            धम्मलिपि     1916         कर्नूल(आ. प्र. ) 
Dhauli:Udisa
5. कालसी           धम्मलिपि     1837         चक्रत (देहरादून) 
6. जौगढ़             धम्मलिपि     1850        गंजाम(उड़ीसा) 
7. सोपारा            धम्मलिपि     1882        थाना(मुंबई) 
8.  धौली              धम्मलिपि      1837        उड़ीसा(भुवनेश्वर) 

अशोक के ये 14 शिलालेख आठ विभिन्न स्थानों शाहबाजगढ़ी (पाकिस्तान के पेशावर जिले में), मानसेहरा (पाकिस्तान के हजारा जिले में), कालसी (उत्तराखंड के देहरादून जिले में), गिरिनार (काठियावाड़), धौली (ओडिशा के पुरी जिले), जौगढ़ (ओडिशा के गंजाम जिले में), एर्रगुडि(आंध्र प्रदेश के कर्नूल जिले में), सोपारा (महाराष्ट्र के थाना जिले में) से प्राप्त हुए।
14 शिलालेखों में वर्णित विषय-
पहला शिलालेख--इसमें पशुबलि की निंदा की गई है। पशुबलि निषेध के बारे में इस प्रकार लिखा गया है "यहाँ कोई जीव मारकर बलि न दिया जाये और न ही कोई ऐसा उत्सव किया जाये जिसमें पशुबलि या मल्ल युद्ध हो पहले प्रियदर्शी राजा की पाकशाला में प्रतिदिन सैकड़ो जीव मांस के लिए मारे जाते थे, लेकिन अब इस अभिलेख के लिखे जाने के समय सिर्फ तीन पशु प्रतिदिन मारे जाते हैं-दो मोर एवं एक मृग, इसमें भी मृग हमेशा नहीं मारा जाता। ये तीनों भी भविष्य में नहीं मारे जायेगें"
दूसरा शिलालेख--इसमें अशोक ने मनुष्य और पशु दोनों की चिकित्सा व्यवस्था का उल्लेख किया है।
तीसरा शिलालेख--इसमें राजकीय अधिकारियों को आदेश दिया गया है कि वे हर पांच वर्ष के उपरान्त राज्य के दौरे पर जायें। इस शिलालेख में कुछ धार्मिक नियमों का भी उल्लेख किया गया है साथ ही इस शिलालेख में अशोक से अल्पव्यय और बचत को भी धम्म का अंग माना है।
चौथा शिलालेख--इस शिलालेख में भेरीघोष की जगह धम्मघोष की घोषणा की गयी है।
पाँचवां शिलालेख--इससे धम्म महामात्रों के नियुक्ति के विषय में जानकारी मिलती है।
छठां शिलालेख--इसमें आत्म-नियंत्रण की शिक्षा दी गयी है। तथा इसी लेख में यह घोषणा की गयी है कि "हर क्षण और हर स्थान पर-चाहे वो रसोईघर हो, अंतःपुर या उद्यान हो। सब जगह मेरे प्रतिवेदक मुझे प्रजा के हाल से परिचित रखें। मैं प्रजा का कार्य सब जगह करता हूँ।
सातवाँ शिलालेख--इसमें कहा गया है कि सभी सम्प्रदाय के लोग सब जगह निवास करें क्योंकि सब संयम और चित्त की शान्ति चाहते हैं।
आठवां शिलालेख--इसमें अशोक की धम्म यात्राओं का उल्लेख मिलता है।
नोवां शिलालेख--इसमें सच्ची भेंट और सच्चे शिष्टाचार का उल्लेख है।
दसवाँ शिलालेख--इसमें अशोक ने आदेश दिया है कि राजा तथा अधिकारी हमेशा प्रजा के हित में सोचें तथा सभी लोग धम्म का पालन करें।
ग्यारहवाँ शिलालेख--इसमें धम्म की व्याख्या की गयी है। इसमें अशोक ने कहा है-धम्म जैसा कोई दान नहीं, धम्म जैसी कोई प्रशंसा नहीं, धम्म जैसा कोई बंटवारा नहीं और धम्म जैसी कोई मित्रता नहीं।
बारहवाँ शिलालेख--स्त्री महामात्रों की नियुक्ति तथा सभी प्रकार के विचारों के सम्मान की बात कही गयी है। इसमें अशोक ने कहा है कि सभी सम्प्रदाय के सार में वृद्धि हो, क्योंकि सबका मूल संयम है। लोग दूसरे सम्प्रदाय की निंदा न करें।
तेरहवाँ शिलालेख--इसमें कलिंग युद्ध का वर्णन तथा अशोक का हृदय परिवर्तन एवं पड़ोसी राजाओं का विवरण मिलता है।
चौदहवाँ शिलालेख--अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन बिताने के लिए प्ररित किया है।
प्रथक कलिंग शिलालेख-इसमें अशोक ने प्रजा के प्रति पितृ-तुल्य भाव प्रकट किया है। तथा कलिंग राज्य के प्रति अशोक की शासन नीति के विषय में बताया गया है।

अशोक के प्रमुख शिलालेख -
1 . शिलालेख(Rock Inscriptions ); 
     दीर्घ शिलालेख, जैसे गिरिनार(गुजरात), मानसेहरा(पाकिस्तान)।
     लघु शिलालेख,  जैसे भाबरू (बैराठ: राजस्थान)।
2 . गुहा लेख(Cave Inscriptions );       
      जैसे बाराबर(बिहार) की नागार्जुन गुफाएं
३. स्तम्भ लेख (Pillar Inscriptions ): 
     लघु स्तम्भ लेख जैसे सारनाथ।
     दीर्घ स्तम्भ लेख जैसे दिल्ली टोपरा, मेरठ  

लघु शिलालेख

    इनके माध्यम से अशोक के व्यक्तिगत जीवन के विषय में जानकारी मिलती है,  जैसे-मस्की(जिला रायचूर, कर्नाटक ) अभिलेख में अशोक ने अपने आपको बुद्ध शाक्य कहा है। इसी अभिलेख में उसका नाम अशोक मिलता है। भाबरू या वैराठ (राजस्थान) अभिलेख में अशोक का नाम प्रियदर्शी मिलता है। नेत्तूर, उडेगोलम , गुर्जरा तथा मस्की  लघु शिलालेखों में अशोक का नाम अशोक मिलता है। एर्रगुड़ि अभिलेख ब्रूस्ट्रोफेडन शैली में लिखा गया है।
प्रमुख लघु शिलालेख           प्राप्ति स्थल

गुर्जरा                                दतिया (मध्य प्रदेश)
सिद्धपुर                           ब्रह्मगिरि (कर्नाटक)
रूपनाथ(On the Kaimur Hills) जबलपुर (मध्य प्रदेश)
सहसाराम                          शाहाबाद (बिहार)
भाबरू                                 जयपुर (राजस्थान)
मस्की                               रायचूर (कर्नाटक)
एर्रगुड़ि                                कर्नूल (आंध्र प्रदेश)
अहरौरा                               मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश)
उडेगोलम (Udegolam)         बेल्लारी (कर्नाटक)
नेत्तूर                                    मैसूर (कर्नाटक)

प्रमुख दीर्घ शिलालेख-

बौद्ध बनने के बाद अशोक ने भारत-भर में बौद्ध धार्मिक स्थलों पर यात्रा करी और उन स्थानों पर अक्सर शिलालेख वाले स्तम्भ लगवाए: अपने राज्याभिषेक के बीस वर्ष बाद, देवों के प्रिय सम्राट प्रियदर्शी इस स्थान पर आए और पूजा की क्योंकि यहाँ शाक्यमुनि बुद्ध पैदा हुए थे। उन्होने एक पत्थर की मूर्ति और एक स्तम्भ स्थापित करवाया और, क्योंकि यह भगवन का जन्मस्थान है, लुम्बिनी के गाँव को लगान से छूट दी गई और फ़सल का केवल आठवाँ हिस्सा देना पड़ा(छोटा स्तम्भ, शिलालेख संख्या -1 )।

No comments:

Post a Comment