बहुसंख्यक आस्था और दलित
दलितों को राम, कृष्ण या किसी देवी-देवता से परहेज नहीं है, आखिर इस देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं की आस्था का सवाल है, जो . बेशक, हरेक को अपने-अपने धर्म और धार्मिक/सामाजिक मान्यताओं, परम्पराओं को मानने की आजादी हो. बस, दलित तो यह चाहते हैं, इस आस्था में, आस्था और परम्पराओं को मजबूत करते धर्म-ग्रंथों में; नारी और शूद्रों के प्रति जो अपमान जनक पसंग हैं, उन्हें निकाल बाहर किया जाए अथवा, कम-से-कम उसकी निंदा हो. उन्हें स्कूल-कालेजों में न पढाया जाए. आप राम का जयघोष कर बगल में छूरी नहीं रख सकते ?
दलितों को राम, कृष्ण या किसी देवी-देवता से परहेज नहीं है, आखिर इस देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं की आस्था का सवाल है, जो . बेशक, हरेक को अपने-अपने धर्म और धार्मिक/सामाजिक मान्यताओं, परम्पराओं को मानने की आजादी हो. बस, दलित तो यह चाहते हैं, इस आस्था में, आस्था और परम्पराओं को मजबूत करते धर्म-ग्रंथों में; नारी और शूद्रों के प्रति जो अपमान जनक पसंग हैं, उन्हें निकाल बाहर किया जाए अथवा, कम-से-कम उसकी निंदा हो. उन्हें स्कूल-कालेजों में न पढाया जाए. आप राम का जयघोष कर बगल में छूरी नहीं रख सकते ?
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