विवेक सुत्त
एक समय आयु. सारिपुत्त सावत्थी में अनाथपिंडिक के आराम जेतवन में विहर कर रहे थे। आयु. आनंद ने आयु. सारिपुत्त को दूर से ही आते देखा। देख कर आयु. सारिपुत्त से कहा-
"आवुस सारिपुत्त ! आपकी इन्द्रियां बहुत प्रसन्न हैं, मुख की कांति तेज है। आज आप बड़े प्रीति-सुख से विहर रहे हैं ?"
"आवुस! मैं कामों से विरक्त हूँ, पाप-धम्मों से विरक्त हूँ, वितर्क-विचारों से विरक्त हूँ; इसलिए विवेक प्रीति सुख से विहर रहा हूँ।"
"साधु! साधु आवुस ! दीघजीवी भवेय्य !!"
स्रोत- संयुक्त निकाय-2 (सारिपुत्त संयुत्तं) पेज 430
एक समय आयु. सारिपुत्त सावत्थी में अनाथपिंडिक के आराम जेतवन में विहर कर रहे थे। आयु. आनंद ने आयु. सारिपुत्त को दूर से ही आते देखा। देख कर आयु. सारिपुत्त से कहा-
"आवुस सारिपुत्त ! आपकी इन्द्रियां बहुत प्रसन्न हैं, मुख की कांति तेज है। आज आप बड़े प्रीति-सुख से विहर रहे हैं ?"
"आवुस! मैं कामों से विरक्त हूँ, पाप-धम्मों से विरक्त हूँ, वितर्क-विचारों से विरक्त हूँ; इसलिए विवेक प्रीति सुख से विहर रहा हूँ।"
"साधु! साधु आवुस ! दीघजीवी भवेय्य !!"
स्रोत- संयुक्त निकाय-2 (सारिपुत्त संयुत्तं) पेज 430
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