Friday, August 23, 2019

सुभासितानी

पदुपं यथा कोकनदं सुगंधं, पातो सिया फुल्लवीत गंधं। 
जिस प्रकार प्रात:काल सुगन्धित युक्त लाल रंग का कमल पुष्पित होता है, 
अंगिरसं पस्स विरोचमानं, तपन्त-आदिच्च-इव-अन्तलिक्खे(म. नि.: पञ्चक निपात पृ  435)। ।।
उसी के समन अंगिरस-गोत्र वाले तथागत को देखो, जो आकाश में चमकते हुए सूर्य के समान प्रकाशमान है

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