रोग सुत्त
भिक्खुओ! दो प्रकार के रोग हैं।
द्वेमे भिक्खवे! रोगा।
कौन-से दो?
कतमे द्वे।
शारीरिक रोग और मानसिक रोग।
कायिको रोगो च चेतसिको रोगो।
ऐसे प्राणी दिखाई देते हैं जो कहते हैं कि हम वर्ष भर, दो वर्ष, पचास . . . सौ वर्ष और उस से अधिक निरोग रहें।
दिस्सन्ति भिक्खवे, सत्ता कायिकेन रोगेन एकम्पि वस्सं, द्वेपि वस्सानि, पञ्ञासम्पि वस्सानि, वस्ससतापि वस्सानि भिय्योपि आरोग्यं पटिजानमाना।
किन्तु भिक्खुओ, ऐसे प्राणी दुर्लभ हैं जो कहते हों, हम मानसिक रोग से क्षण भर के लिए निरोग रहें, क्षीणास्रवों को छोड़कर।
ते भिक्खवे, सत्ता दुल्लभा लोकस्मिं ये चेतसिकेन रोगेन मुहुतम्पि आरोग्यं पटिजानन्ति, अञ्ञत्र खीणासवेहि(अ. नि. भाग-२: चतुक्क निपात)।
भिक्खुओ! दो प्रकार के रोग हैं।
द्वेमे भिक्खवे! रोगा।
कौन-से दो?
कतमे द्वे।
शारीरिक रोग और मानसिक रोग।
कायिको रोगो च चेतसिको रोगो।
ऐसे प्राणी दिखाई देते हैं जो कहते हैं कि हम वर्ष भर, दो वर्ष, पचास . . . सौ वर्ष और उस से अधिक निरोग रहें।
दिस्सन्ति भिक्खवे, सत्ता कायिकेन रोगेन एकम्पि वस्सं, द्वेपि वस्सानि, पञ्ञासम्पि वस्सानि, वस्ससतापि वस्सानि भिय्योपि आरोग्यं पटिजानमाना।
किन्तु भिक्खुओ, ऐसे प्राणी दुर्लभ हैं जो कहते हों, हम मानसिक रोग से क्षण भर के लिए निरोग रहें, क्षीणास्रवों को छोड़कर।
ते भिक्खवे, सत्ता दुल्लभा लोकस्मिं ये चेतसिकेन रोगेन मुहुतम्पि आरोग्यं पटिजानन्ति, अञ्ञत्र खीणासवेहि(अ. नि. भाग-२: चतुक्क निपात)।
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