बुद्ध उपदेशों की प्रासंगिकता
ति-पिटक ग्रंथों में बुद्ध उपदेश अथाह हैं. 'ति-पिटक' अर्थात विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभि-धम्म पिटक के अंतर्गत और इस 'ति-पिटक' के बाहर भी धम्म ग्रंथों की संख्या अथाह हैं. दूसरे, वे आम पाठक को उपलब्ध नहीं हैं, जिस तरह दलित चेतना साहित्य की पुस्तकें उपलब्ध हैं. अम्बेडकरी साहित्य की पुस्तकें जिस तरह घर-घर पहुँच चुकी हैं, बौद्ध धम्म-ग्रन्थ नहीं पहुंचे हैं. और इसलिए लोग, जिस तरह दलित चेतना साहित्य पर चर्चा करते हैं, धम्म-साहित्य पर नहीं कर पाते हैं. इसके दो प्रमुख
कारण हैं. प्रथम, ति-पिटकाधीन ग्रंथों का दलित चेतना साहित्य की तर्ज पर छोटी-छोटी पुस्तिकाओं के रूप में उपलब्ध न होना. और दूसरे, इन धम्म-ग्रंथों पर विवेचनात्मक पुस्तकों का अभाव होना।
अगर स्पष्ट कहा जाए तो लोगों ने बाबासाहब डॉ अम्बेडकर का अनुसरण करते हुए धर्मांतरण तो कर लिया है, धम्म को अपने सोच और संस्कारों में ढाल तो लिया है परन्तु उनके अध्ययन की सीमा डॉ अम्बेडकर कृत 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' ही है। और यह उचित भी है। क्योंकि, जैसे ऊपर कहा गया है, ति-पिटक और इसके सहाय ग्रन्थ असंख्य हैं, दूसरे उनमें जम कर ब्राह्मणवाद भरा पड़ा है और इसलिए बाबासाहब ने 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' लिख कर इस तरह के सारे विवादों को ख़त्म कर दिया है। आप 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' पढ़ लें, फिर आपको अन्य धम्म-ग्रन्थ कतई पढ़ने की आवश्यकता नहीं रह जाती। जहाँ तक रिफरेन्स का सवाल है, भदंत आनंद कोसल्यायन ने 'बुद्ध एंड हिज धम्मा' का हिंदी अनुवाद करते हुए उसके प्रत्येक अध्याय के अंत में बाबासाहब ने जो मेटर जिस धम्म-ग्रन्थ से लिया है, क्रमश: ग्रंथों की सारिणी अंकित कर दी है।
लोग, समयाभाव के कारण उन्हें पढ़ नहीं पाते हैं. मेरी कोशिश है,पालि का ज्ञान जो भी अर्जित किया हैं, का उपयोग कर बुद्ध उपदेशों को सरल और सहज तरीके से सामने रखना. इस तारतम्य में हमें आपके धैर्य और सहयोग की जरुरत है.
भवतु सब्ब मंगलं.
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