Wednesday, August 28, 2019

पंडुु रोगाबाधो

एकेन खो पन समयेन अवन्तिकायं रञ्ञो पज्जोतस्स पंडुु रोग आबाधो अहोसि।
एक समय अवंति के राजा चंड प्रद्योत को पंडू रोग से पीड़ित हुआ।
बहु महंता महंता दिसा पामोक्खा वेज्जा आगंत्वा ना सक्खिसुं अरोगं कातुं।
बहुत-से बड़े-बड़े,  दिशाओं में प्रख्यात वैद्य आकर रोग दूर न कर सकें।
बहु हिरञ्ञं आदाय अममन्सु
बहुत सुवण्ण लेकर।
अथ खो राजा पज्जोतो,  रञ्ञो मागधस्स सेनियस्स बिम्बिसारस्स सन्तिके दूतं पाहेसि-
तब राजा प्रद्योत ने मगध के राजा सेनिय बिम्बिसार के पास दूत भेजा-
 "मय्हं  खो तादिसो आबाधो, साधु देवो,  वेज्जं आणापेतुं तेन च तिकिच्छापेतुं।"
मुझे ऐसा रोग है, अच्छा है महाराज,  वेद्य को आज्ञा दें जिससे चिकित्सा हो।
अथ खो राजा मागधो सेनियो बिम्बिसारो जीवको कोमार भच्चं आणापेसि-
तब मगध राजा सेनिय बिम्बिसार ने जीवक कोमार्य भृत्य को आज्ञा दी-
 "गच्छ भणे जीवक, उज्जेनि गंत्वा राजानं पज्जोतं तिकिच्छाहि।"
जाओ जीवक, उज्जेनि जा कर राजा प्रद्योत की चिकित्सा करो।
"एवं देवा" ति खो जीवको रञ्ञो बिम्बिसारस्स पटिसुत्वा उज्जेनि गंत्वा,
राजा बिम्बिसार को "हाँ महाराज ", कह कर जीवक उज्जेनि जा कर
रञ्ञो पज्जोतस्स विकारं सल्लक्खेत्वा राजानं पज्जोतं एतद वोच-
राजा प्रद्योत के विकार का विचार कर राजा प्रद्योत को यह कहा-
"सप्पि देव, पचिस्सामि। तं देवो पिविस्सति।"
"घी महाराज, पकाऊंगा, उसको महाराज पियेंगे। "
अलं भणे जीवक, यं सक्कोसि बिना सप्पिना अरोगं कातुं तं करोहि।
नहीं भाई जीवक, बिना घी से जो कर सकते हो, करो।
जेगुच्छ मे सप्पि, पटिकूलं "
घी से मुझे घृणा है। "
अथ खो जीवक एतद अहोसि-
तब जीवक को यह हुआ-
इमस्स खो रञ्ञो तादिसो आबाधो, न सक्का बिना सप्पिना अरोगं कातुं ।
इस राजा को वैसा रोग है, जो बिना घी के दूर नहीं हो सकता।
यन्नूनाहं निपचेय्य कसाव वण्णं कसाव गंधं कसाव रसं।
यदि मैं कसैला रंग, कसैली गंध, कसैला रस पकाऊं।
अथ खो जीवको नाना भेसज्जेहि सप्पि निप्पथि कसाव वण्णं कसाव गंधं कसाव रसं।
तब जीवक ने नाना औसधि से पकाया, कसैला रंग, कसैली गंध, कसैला रस।
अथ खो जीवकस्स एतद अहोसि- इमस्स खो रञ्ञो सप्पि पीतं परिणामेतं उद्देकं दस्सति।
तब जीवक को ऐसा हुआ- इसके घी को पीते ही परिणाम स्वरूप राजा को डकार होती है।
चंडो अयं राजा घातापेय्यापि मं, यन्नूनाहं पटिगच्चे व आपुच्छेय्यं।
यह राजा चंड है, मुझे मरवा देगा, यदि मैं वापिस आ कर आज्ञा लूँ।
अथ खो जीवको येन राजा पज्जोतो तेन उपसंकमि
तब जीवक जहाँ राजा प्रद्योत था, गया
उपसंकमित्वा राजानं पज्जोतं एतद वोच-
जा कर राजा प्रद्योत से यह कहा
मयं खो देव, वेज्जा नाम तादिसेन मुहुत्तेन मूलानि उद्धराम, भेसज्जानि संहराम।
हम महाराज,  मुहूर्त से जड़े उखाड़ेंगे  औसधि  का संग्रह करेंगे।
देवो वाहानागारेसु च द्वारेसु च आणापेतुं-
महाराज, वाहन-आगार में और द्वारों में आज्ञा दें-
'येन वाहनेन जोवको इच्छति तेन वाहनेन गच्छतु ,
जिस वाहनेन सी जीवक जाना चाहे, उस वाहन से जाने दे
येन द्वारेन इच्छति, तेन द्वारेन गच्छतु
जिस द्वार से चाहे, उस द्वार से जाए
यं कालं इच्छति, तं कालं गच्छतु च पविसतु च।
जिस समय चाहे, उस समय जाने दे, प्रवेश करने दे।
राजा तथा आणापेसि।
वैसे राजा ने आज्ञा दी( भदंत आनंद कोसल्यायन :31 दिन में ; पालि पृ 145)।
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1. आणापेतुं- आज्ञा दे। तिकिच्छापेतुं- चिकित्सा कराएं। जेगुच्छ- घृणा। पटिगच्चे- जावूं। आपुच्छेय्य- आज्ञा लूँ ।
उद्देकं- डकार। घातापेय्यापि- मरवा सकता है। उद्धराम- उखाड़ते हैं। संहराम- संग्रह करते हैं। 
2. महाकात्यायन- बुद्ध का प्रमुख सावक औरअवंति के राजा चंड प्रद्योत के पुरोहित का लड़का। जाति-भेद पर महाकात्यायन का राजा प्रद्योत के मध्य संपन्न संवाद (मधुरिय सुत्त: म. नि.) बौद्ध ग्रंथों प्रसिद्द है।
3. प्रतीत होता है, बुद्ध का प्रद्योत के राज्य में जाना नहीं हुआ(कोसम्बी; 'भगवान बुद्ध , जीवन और दर्शन'  पृ 45 )।   

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